गुरुवार, 18 नवंबर 2010

मैं हूँ निंदक |

मैं हूँ निंदक |बचपन से ही आलोचक बनना चाहता था | सो आलोचनाएँ  करता रहा, किन्तु ये आलोचनाएँ कब निंदा बन गयीं पता ही नहीं चला |जब पता चला तो देर हो चुकी थी, आदत हो गयी थी निंदा करने की |(अपनी इस आदत की भी घोर निंदा करता हूँ | )अब part time आलोचक से  full time निंदक बन गया हूँ | कभी भी, कहीं भी, किसी की भी निंदा करता हूँ | अब अपनी भड़ास यहाँ निकालूँगा |  किन्तु कुछ महान आत्माओं को निंदा के दायरे से बाहर रखूंगा-
१- महामहिम राष्ट्रपति(?) प्रतिभा देवी सिंह पाटिल क्यूंकि आज तक जान ही नहीं पाया कि उन्होंने पहले या अब किया क्या है सो निंदा का प्रश्न ही नहीं उठता |
२- परम आदरणीया सुश्री मायावती क्यूंकि कुछ समय पहले एक मित्र को पुलिस केवल इसलिए उठा ले गयी थी क्योंकि होली की मस्ती में उन्होंने उनके चित्र पर रंग फ़ेंक दिए थे  |
३- विक्रम श्रीवास्तव क्यूंकि अब पर निंदक हूँ तो स्वयं की निंदा करना सही नहीं है.और दूसरी बात यह की मुझ जैसे तुच्छ की निंदा के लिए आप पाठक गण है ना.|


ये निंदा का सफ़र जल्द ही प्रारंभ होगा, संभल कर रहे कही अगली बारी आपकी तो नहीं ?

6 टिप्‍पणियां:

  1. निंदक नियरे राखिये..........! आपका स्‍वागत है

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  2. bas main sacche nindak ki talash me hun...
    jo bina bhed bhao ke ninda kare... taki saamne waale ko apni kami ka ehsaas ho jaye...

    is lekh ke liye dhanyawaad...

    Ise bhi padhen...

    http://tum-suman.blogspot.com/2010/11/blog-post_18.html

    Thanks
    Suman

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  3. निंदक नियरे राखिए।
    शुक्रिया।

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  4. आपके अन्दर व्यंग्यात्मक लेखन की बहुत अच्छी क्षमता दिख रही है...। ऐसी ही चुटीली ( अपमानजनक होने से बचिएगा...) निन्दाएँ करते रहिए...मेरी शुभकामनाएँ...।

    प्रियंका

    www.priyankakedastavez.blogspot.com

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  5. बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !

    आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

    आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें

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  6. nindak ho to aisa , jo ninda se pare ki paridhi bhi banaker chale ... vyangyatmak ninda kee dhaar rochak hai

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